अगर आप प्रकृति और रोमांच प्रेमी हैं और इस गर्मी में किसी ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां फूलों से भरी घाटी, नदियां, साफ आसमान हो तो आपके लिए फूलों की घाटी एक अच्छा विकल्प हो जाता है। ये जगह स्वर्ग से कम नहीं है, दूर-दूर तक रंग- बिरंगे फूल दीखाई देते हैं। यह घाटी नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व का हिस्सा है
घूमने का सही समय

फूलों की घाटी सिर्फ सालभर में केवल 5 महीने के लिए ही खुलता है। जून से अक्टूबर तक खुला रहता है। यहां आने के लिए मानसून सबसे अच्छा समय है इस समय यहां 500 से ज्यादा फूलों की प्रजाती मिलती है। 1 जून से टूरिस्टो के लिए फूलों की घाटी खोल दी गई है। और 31 अक्टूबर को बंद कर दिया जाता है| इसके अतिरिक्त वर्ष के बाकी महीनों में यह भारी वर्ष से ढाका रहता है।
कैसे पहुंचे

फूलों की घाटी उत्तराखंड के चमोली जिले में है। दिल्ली से फूलों की घाटी की दूरी लगभाग 520 किमी है। दिल्ली से हरिद्वार बस या ट्रेन से जा सकते हैं, दूरी लगभाग 240 किमी है। हरिद्वार से गोविंद घाट तक बस या टैक्सी से जा सकती है, दूरी लगभाग 240 किमी है। गोविंदघाट से घांघरिया (13 किमी ट्रेक) तक पैदल या खच्चर द्वारा पहुँच सकते हैं। घांघरिया से फूलों की घाटी का 4-5 किमी का ट्रेक शुरू होता है।
फूलों की घाटी का इतिहास

वर्ष 1931 में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस. स्माइथ, एरिक शिप्टन और आर.एल. होल्ड्सवर्थ माउंट कैमेट के सफल अभियान से लौटने के दौरान अपना रास्ता भटक गए। जिसके बाद रास्ता खोजते हुए वे ऐसी घाटी में पहुंचे जो फूलों से भरी हुई थी। वे इस क्षेत्र की सुंदरता की ओर आकर्षित हुए और इसे वैली ऑफ फ्लावर का नाम दे दिया। बाद में फ्रैंक स्माइथ ने उसी शीर्षक के नाम पर एक पुस्तक भी लिख दी थी।
भारत सरकार द्वारा वर्ष 1982 में इस घाटी को भारतीय राष्ट्रीय उद्यान के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी।
वर्ष 1988 में यूनेस्को ने इस घाटी की अद्भुत सुंदरता, स्वच्छ वातावरण को ध्यान में रखते हुए इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में सम्मिलित कर लिया था।
फूलों की घाटी – जहां हर 15 दिन में घाटी बदलती है रंग
यह घाटी एक जीवित चित्रकला की तरह है, जो समय के साथ खुद को रंगों में फिर से रचती है। फूलों की घाटी में जुलाई से सितंबर तक हर 15 दिन में अलग-अलग फूल खिलते हैं। जैसे ही एक फूल मुरझाता है, दूसरा खिल उठता है और घाटी का रंग बदल जाता है। कभी गुलाबी, कभी पीला, कभी बैंगनी और कभी सफेद – प्रकृति की इस कारीगरी को देखना किसी जादू से कम नहीं। फूलों की घाटी में उगने वाले फूलों की संख्या 500 से अधिक प्रजातियों में होती है। ऊँचाई, तापमान और वर्षा के अनुसार हर फूल की खिलने की अवधि अलग होती है। यही कारण है कि घाटी का स्वरूप हर 10–15 दिन में बदलता रहता है।
गोविंद घाट से फूलों की घाटी का ट्रेक-

गोविंद घाट लक्ष्मण गंगा और अककनंदा नदी का संगम स्थल है। गोविंद घाट से पुलना तक शेयरिंग टैक्सी ले सकते हैं, दूरी 3 किमी है। पुलना से वैली ऑफ फ्लावर और हेमकुंड साहिब जाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है और यहीं से चढ़ाई और ट्रेक शुरू हो जाता है। पुलाना से 2 किमी के ट्रेक के बाद जंगल छत्ती पड़ता है यहां पे कुछ दुकानें मिलेंगी जहां आप आराम कर सकते हैं। ट्रेक के बीच में बहुत सारे पानी के प्राकृतिक संसाधन मिलते हैं। आगे चल कर भ्यूंडार गांव आता है जहां से लक्ष्मण गंगा नदी को पार करते हैं।
भ्यूंदर से आगे घांघरिया तक चैलेंजिंग ट्रेक आता है| घांघरिया में रुकने के लिए टेंट और होटल मिल जाएंगे। घांघरिया से आगे दोपहर 12:00 बजे के बाद नहीं जाने दिया क्योंकि जंगली जानवरों का डर रहता है। घांघरिया से आगे दो रास्ते जाते हैं एक हेमकुंड साहिब के लिए और दूसरा रास्ता फूलों की घाटी के लिए जाता है। घांघरिया से आगे 1/2 किमी आगे जाने के बाद चेक पोस्ट पड़ेगा जहां से आगे जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है (भारतीयों के लिए 150 रुपये/प्रति व्यक्ति और प्रवासियों के लिए 600 रुपये/व्यक्ति)। यहाँ से सुबह 7:00 बजे के बाद ही आगे जाने की अनुमति मिल जाती है।
घांघरिया के आगे पानी के प्राकृतिक संसाधन नहीं मिले तो साथ में पानी ले कर चले। इस ट्रेक के बीच में बहुत सारे झरने, पुष्पवापति नदी मिलती है। घांघरिया से आगे 4 किमी ट्रेक के बाद वैली ऑफ फ्लावर पहुचता है। यहां पहुंचने के बाद बहुत ही खूबसूरत नजारा मिलता है जहां दूर-दूर तक बादलों के नीचे रंग-बिरंगे फूल देखने को मिलते हैं
फूलों की घाटी केवल घूमने की जगह नहीं, बल्कि प्रकृति द्वारा रची गई एक जीवंत रचना है, जो हर पंद्रह दिन में अपने रंग और रूप को नया अर्थ देती है। यह घाटी मन को सुकून और आत्मा को शांति देती है। अगर आप भागदौड़ भरी ज़िंदगी से कुछ पल निकालकर प्रकृति की गोद में सुकून तलाशना चाहते हैं, तो एक बार इस जादुई घाटी की यात्रा अवश्य करें।