सुरकंडा देवी मंदिर 51 सिद्ध पीठो में से एक सिद्धपीठ है जहां पार्वती सती का सर गिरा था। यह एक हिल स्टेशन है धार्मिक यात्रा के साथ-साथ पहाड़ों की ख़ूबसूरत वादियो में समय बिता सकते हैं |
सुरकंडा देवी मंदिर: 51 सिद्धपीठों में से एक सिद्धपीठ, धार्मिक आस्था का एक प्रमुख केंद्र है जो भक्तों को आकर्षित करता है।
घूमने का सही समय

यहां जाने के लिए सर्दी और गर्मी दोनों मौसम अच्छे हैं, अगर आपको बर्फबारी का लुफ्त उठाना है तो आप दिसंबर से फरवरी तक यहां जा सकते हैं, इस समय सारे पहाड़ बर्फ से ढक जाते है जो दृश्य बहुत ही मन मोहक होता है| गर्मीयों में भी ज्यातातर कोहरा छाया रहता है ऊंचे-उंहे पहाड़ों के बीच ठंडी ठंडी हवा का आनंद ले सकते हैं|
कैसे पहुंचे

सुरकंड देवी मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित है | यहां के लिए नजदीकी हवाई अड्डा जॉली गारंटी है, जो 94 किमी की दूरी पर है यहां से टैक्सी ले सकता है। यहां के लिए नजदीकी बस स्टैंड धनोल्टी है, जो 8 किमी की दूरी पर है और नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है जो 63 किमी की दूरी पर है, यहां से शेयरिंग टैक्सी या बस ले सकते हैं। सुरकंडा देवी मंदिर और शहरों से भी जुड़ा हुआ है, नरेंद्र नगर से लगभाग 63 किमी की दूरी पर है जिला मुख्यालय नई टिहरी से 41 कि०मी० की दूरी पर स्थित है | टैक्सी या गाडि़यां कद्दूखाल तक जाती है यहां से मंदिर परिसर में जाने के लिए लगभग 3 किमी की पैदल या रोपवे से यात्रा की जाती है।
सुरकंडा देवी मंदिर: 51 सिद्धपीठों में से एक सिद्धपीठ
गंगा दशहरा का उत्सव यहां बड़े हर्षोउल्लास से मनाया जाता है जो यात्रियों को आकर्षित करता है। प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां मिलती हैं मान्यता है कि जहां भी ये प्रसाद रखते हैं वहां सुख-समृद्धि आ जाती है। रौंसली की पत्तियां में औषधीय गुण होते हैं, रौंसली के वृक्ष को देववृक्ष मानते हैं। यही वजह है कि इस वृक्ष की लकड़ियों का प्रयोग पूजा के अलावा किसी अन्य कार्य यानी कि इमारतों या अन्य व्यावसायिक स्थलों पर नहीं किया जाता।
पवित्र जलधारा

सुरकंडा मंदिर के पास कहीं भी जल का स्रोत नहीं है लेकिन मंदिर के पास एक जलधारा है इसके पानी को गंगाजल के समान माना जाता है मान्यता है कि राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे तो उस समय भगवान शिव की जटाओं से गंगा की एक धारा यहाँ गिरी थी। तब से इस जगह पर एक जल स्रोत है| जो लोग मंदिर में यात्रा करने आते हैं वो यहां से जल भर के घर ले जाते हैं।
सुरकंडा देवी मंदिर की पौराणिक कथा

सुरकंद देवी मंदिर के पीछे पौराणिक कथा है इसके अनुसर भगवान शिव और माता सती को उनके पिता राजा दक्ष ने भव्य वैदिक यज्ञ में अमंत्रित नहीं किया तो क्रोध में, सती ने खुद को अग्नि में भस्म कर दिया सती ने उसी क्षण अपना शरीर छोड़ दिया | aशिव अपनी पत्नी को खोने के दुःख और क्रोध में उन्होंने सती के शरीर को अपने कंधे पर रखा और पूरे स्वर्ग में अपना तांडव शुरू कर दिया सती के शव को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने अपना चक्र सुदर्शन भेजा उनके शरीर के टुकड़े तब तक गिरते रहे जब तक कि शिव के पास ले जाने के लिए कोई शरीर नहीं बचा| जहां-जहां शरीर के टुकड़े गिरे उस जगह पर सिद्ध पीठ बन गए, सुरकंडा देवी में माता सती का सर गिरा था ऐसे ही कुल 51 सिद्ध पीठ है|
ट्रैकिंग और रोपवे सुविधा

अगर आपको ट्रैकिंग पसंद है तो आप यहां सुंदर वातावरण में पतले रस्तों से होते हुए लगभाग 3 किमी के ट्रेक के बाद मंदिर परिसर में पहुंते हो जो रोंसली के पेड़ों से घिरा हुआ है यहां से देहरादून, चकराता, प्रतापनगर और चंद्रबदनी के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं | अगर आपके साथ बच्चे या बूढ़े लोग हैं जो पैदल यात्रा नहीं कर सकते तो उनके लिए यहां रोपवे की सुविधा भी है। 523 मीटर लंबे रोपवे से लोग पांच से दस मिनट में मंदिर तक पहुंच जाते है |
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रहने और अन्य पर्यटन स्थल
यहां रहने के लिए होम स्टे, होटल और रिसॉर्ट कानाताल या धनोल्टी में मिल जाएगा, बजट अनुकूल के साथ-साथ लक्जरी होटल भी मिल जाएंगे | सुरकंडा देवी मंदिर मसूरी से 40 किमी दूर है अगर आप यहां जाएं तो मसूरी भी घूम सकते हैं साथ ही सर्दियों में धनोल्टी में बर्फ देख सकता है और कैंप्टी फॉल, नई टिहरी, टिहरी बांध आदि घूम सकते हैं |